चूड़ियों की खनक थी वहाँ,
काँच की चुभन भी.....
खामोश थी वह,
कुछ हैरान भी
लगातार, वह तलाशती है कुछ अनदेखा......
भीतर गहरे में कहीं
गूँजते हैं,
अर्थ निरंतर
स्वयं की,
सौंदर्य सत्ता में वह.......
श्वास श्वास
प्राण प्राण
धड़कती है,
जैसे.........
बीज के गर्भ में,
सांस लेती है.....
विकास की अदृश्य संभावनाएं,
सृजन की हरित ऊर्जा
वह........
रीतियों के प्रष्न चिन्हो को,
अनुत्तरित लाँगती है,
सारे अपशगुन
तमाम विरोधाभास,
प्रारब्ध से निकालकर,
अपने हिस्से की ज़मीन को सींचती है साधिकार,
टूटी हुई चीज़ो से,
सजाती है,मनन पसंद कोना.
विश्वास की मांगलिक संवेदना को,
मांग में भर,
आसमानी देवताओं को अर्घ देती है........
वास्तु के निज आगन्तुज,
दोषों को अंतस की,
जलज परिक्रमा से धोकर
करती है जीवन का मांगलिक अभिषेक,
वह.....
पेड़
पहाड़
तूफ़ान......
करीब से देखती है.
देखती है,
चिड़िया का घोंसला,
गुलमोहर के फूल,
धरती आकाश की
मौन नैसर्गिकता लगातार......
वह देखती है जल की गति
उसकी स्वाभाविक एकरूपता
उसके स्मरण में आती हैं,
समस्त निष्चल स्मृतियाँ
प्रथम स्पन्दन.......
और, इस आशचर्य जनक रोमांच में,
.......वह.......
अस्तित्व हो जाती हैं.
काँच की चुभन भी.....
खामोश थी वह,
कुछ हैरान भी
लगातार, वह तलाशती है कुछ अनदेखा......
भीतर गहरे में कहीं
गूँजते हैं,
अर्थ निरंतर
स्वयं की,
सौंदर्य सत्ता में वह.......
श्वास श्वास
प्राण प्राण
धड़कती है,
जैसे.........
बीज के गर्भ में,
सांस लेती है.....
विकास की अदृश्य संभावनाएं,
सृजन की हरित ऊर्जा
वह........
रीतियों के प्रष्न चिन्हो को,
अनुत्तरित लाँगती है,
सारे अपशगुन
तमाम विरोधाभास,
प्रारब्ध से निकालकर,
अपने हिस्से की ज़मीन को सींचती है साधिकार,
टूटी हुई चीज़ो से,
सजाती है,मनन पसंद कोना.
विश्वास की मांगलिक संवेदना को,
मांग में भर,
आसमानी देवताओं को अर्घ देती है........
वास्तु के निज आगन्तुज,
दोषों को अंतस की,
जलज परिक्रमा से धोकर
करती है जीवन का मांगलिक अभिषेक,
वह.....
पेड़
पहाड़
तूफ़ान......
करीब से देखती है.
देखती है,
चिड़िया का घोंसला,
गुलमोहर के फूल,
धरती आकाश की
मौन नैसर्गिकता लगातार......
वह देखती है जल की गति
उसकी स्वाभाविक एकरूपता
उसके स्मरण में आती हैं,
समस्त निष्चल स्मृतियाँ
प्रथम स्पन्दन.......
और, इस आशचर्य जनक रोमांच में,
.......वह.......
अस्तित्व हो जाती हैं.
Lagatar weh talashti hay Kuch andekha bhitar gehrey may Kahin ❤️........waaaah
ReplyDeleteDear d lines which u touched reflecting d fluency of feminity.
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