Wednesday, June 6, 2018

इन पंखुड़ियों  की गलियों  में ,
हृदय परिधि के सम्मुख 
इस शीतल एकांत में
अगर आओ तुम...... 
इस  अँधेरे में , प्रेम प्रकाश है 
बहुत.... 
कोई आवरण नहीं यहाँ 
गहन सन्नाटे में बस आरम्भ है 
तुम्हारा 
इस प्रेम परिधि की स्वयं कोई परिधि नहीं 
... यहाँ आनंद है भरपूर 
सम्पूर्ण मस्ती है 
श्रृंगार भरा मधुर आलिंगन है 
यह पगडंडियां तुम्हें सीमाओं के पार ले जाएँगी 
इन पगडंडियों की एक ही मंज़िल है..... प्रेम 
प्रवेश द्वार को तुम्हारा इंतज़ार है 
अगर आओ  तुम .... (शाश्विता )

1 comment:

चूड़ियों की खनक थी वहाँ, काँच की चुभन भी..... खामोश थी वह, कुछ हैरान भी लगातार, वह तलाशती है कुछ अनदेखा...... भीतर गहरे में कहीं गूँजत...