मेरे घर की जूठन घिसती,
तेरे हाथों की लकीरों को, देना चाहती हूँ मैं,.....
कुछ और विस्तार......
तेरी जवान उम्र की झुर्रियों को,........
उतरन
दया
और
घृणा से कुछ अलग देना चाहती हूँ......
नारियल
फल
और
काली दाल में कैद, परिवार की बालाओं के साथ
कुछ और भी
मैं........जानती हूँ,
तीस दिन की जी तोड़ मेहनत,
तुम्हारी हथेलियों पर,
छन से गिरते,......चंद सिक्कों का संगीत नहीं
मैं.........
देना चाहती हूँ, तुम्हारी मजबूर आँखों को,........
एक तृप्त एहसास........!
तेरी.........
उमंगो के पंछी
कहां,कूकते हैं मन की बगिया में,
चाहते हैं
खुला आकाश.........
कुछ बूँदे
.......और.........
आग.
देना चाहती हूँ
तुम्हें,
गीली मिट्टी की
खुशबू
छोटी-छोटी आशाओं में.......
क्षितिज का इंतजार.
.......तेरी.......
मैली काया में......
मैं ही......
सुलग रही हूँ
बेबसी की धूप लिए,
ऐ अजनबी......
.....तुम.......
मेरे दिल में धड़कती,
मेरे अक्स का रुप हो
......मैं.....
देना चाहती हूँ....
......तुम्हें,.....
कुछ और भी
कुछ भी
जो तुम,
चाहती हो
......शायद......
इनाम
और
प्रमाण
तेरे......मेरे....
इंसान होने का.
(Dr Shashvita)
तेरे हाथों की लकीरों को, देना चाहती हूँ मैं,.....
कुछ और विस्तार......
तेरी जवान उम्र की झुर्रियों को,........
उतरन
दया
और
घृणा से कुछ अलग देना चाहती हूँ......
नारियल
फल
और
काली दाल में कैद, परिवार की बालाओं के साथ
कुछ और भी
मैं........जानती हूँ,
तीस दिन की जी तोड़ मेहनत,
तुम्हारी हथेलियों पर,
छन से गिरते,......चंद सिक्कों का संगीत नहीं
मैं.........
देना चाहती हूँ, तुम्हारी मजबूर आँखों को,........
एक तृप्त एहसास........!
तेरी.........
उमंगो के पंछी
कहां,कूकते हैं मन की बगिया में,
चाहते हैं
खुला आकाश.........
कुछ बूँदे
.......और.........
आग.
देना चाहती हूँ
तुम्हें,
गीली मिट्टी की
खुशबू
छोटी-छोटी आशाओं में.......
क्षितिज का इंतजार.
.......तेरी.......
मैली काया में......
मैं ही......
सुलग रही हूँ
बेबसी की धूप लिए,
ऐ अजनबी......
.....तुम.......
मेरे दिल में धड़कती,
मेरे अक्स का रुप हो
......मैं.....
देना चाहती हूँ....
......तुम्हें,.....
कुछ और भी
कुछ भी
जो तुम,
चाहती हो
......शायद......
इनाम
और
प्रमाण
तेरे......मेरे....
इंसान होने का.
(Dr Shashvita)
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