मुक्ति की संभावनाएं, उसके बहुत करीब हैं
बचपन की कहानियों से गुज़रती,
हर पगडण्डी.......
हर वह मील पत्थर......
जो उसे परियों की सुनहरी देह तक ले जाते थे
पूरी तरह भूल चुकी है वह
माँ की लोरी में......
निपुण राजकुमार का आश्वासन भी,
......एक बुरे सपने की तरह.....
समस्त उत्पीड़न के बाद भी,
उसकी रातों में चमकते हैँ जुगनू,
झींगुर की आवाज़
और
धड़कन.......
व्यभिचार की परिभाषा
और
व्यापार के बीच,
निसंदेह
खिलते हैं उसकी देह में सात रंग,
मानवता की गंध
एक मौलिक स्पर्श
वैशया परिवेश में निर्लिप्त
सारी संज्ञाओं के पार
प्रेम के अदभुद सौंदर्य में असीम
विराट हो रहे है.......वह....
मुक्त हो रही है......वह.......
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