Sunday, February 3, 2019

तीसरा आदमी

बसंत लगभग,
झड़ चुका है वहाँ.........
परिंदों की आँखों में,
सदी के ध्वंस की,
दरिद्र स्मृतियाँ साफ नज़र आती हैं.
पिछली सदी के लोग
उम्र की दरारों में,
ठहर गया,
तीसरे आदमी का तजुर्बा..........
बार बार,
दोहराते हैं
हवा की बदलती तरंगों से,
वे..........
उसकी गंध
भाँप लेते हैं,
युवाओं की त्वचा से,
शुष्क होती नमी को छूकर,
वे.........
तीसरे आदमी के संकेत,
समझ जाते हैं.
......तीसरा आदमी......
धोती....
टोपी.....
और
पगड़ी को,
पौशाक से निकालकर,
मज़हबी मंसूबों तक लाता है.
वह उनकी मिट्टी में,
बारूद रौंपता है.......
उनके नमक में खौफ घोलता है.
उसका इरादा......
महामारी की तरह फैल जाता है,
वह उनकी हड्डियों के खनिज में,
सांप्रदायिक रसायन पिघलाकर,
महंगी सिगार में कश फूँकता है.
यह तीसरा आदमी..........
हर दूसरे आदमी में,
कमज़ोर कौशिकाओं की
अराजक उपज है.
पिछली सदी के लोग
कहते हैं.........
बहुत पहले हुआ करता था,
सिर्फ......आदमी.......
जो,
धोती........
टोपी.......
और
पगड़ी......
की जगह बस कपड़ा पहनता था.
पुराने लोग बताते हैं,
देर रात,
शहरों के,
कुओं के पास,
कुछ साए, मंडराते हैं,
जो सदी का सामूहिक ध्वंस सुनाते हैं,
.......और......
वीरांगनाओ का जोहर भी,
उनकी चीखों से बच्चे जाग जाते हैं,
माँ की छातियों का,
दूध.......
 दहल जाता है.
देर रात मंडराते साए,
शौक गीत गाते हैं,
वह देखते हैं,
बसंत........
लगभग झड़ चुका है,
घौंसलों में,
बिखरे हुए पंख,
कुछ जाने पहचाने ध ब्बे हैं.
लोरियाँ रुआँसी हैं,
और.......
रात की कोख में,
ज़ख़्मी सन्नाटा है
सरसों की गंध,
कभी भी,
पीलापन खो सकती है,
धरती,
अपनी करवटों में,
अब........और.....
लावा नहीं समेट पाएगी.
जब....जब....
दूसरा आदमी,
पाया जायेगा,
पहला आदमी......
तीसरे आदमी की,
.........मौत.....
मारा जाएगा.....
और,
बसंत पूरा झड़ जाएगा......










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