......उसने......
त्वचा के रोये रोये से,
दिशाओ का,
साक्षात्कार किया
स्पर्श के,
नैसर्गिक सम्बोधन की
हर सम्भावना को.......
उसने.....
स्वीकार किया
आहट की.....
छोटी से छोटी,
इकाई.....
उसकी संवेदनाओं को,
रोमांचित कर
दह में,
गूँज भर देती......
रगो में,
दौड़ता अंधकार
उसके अंतस को
आकर देता रहा,
जैसे........
कोख के,
गहरे अँधेरे में,
साँस लेता है.......जीवन.....
वह,
धरती की
हर करवट को
पोर...पोर...
महसूस करती,
पगडडियों की गंध,
.....उसे.....
मंज़िल के करीब ले जाती
.......वह लड़की........
जन्म और जात, से अंधी
नहीं, समझ पाई
जन्म से.....
जात का सम्बन्ध
......वह....
दिन और रात के,
सौंदर्य में,
निरंतर......निष्पक्ष बनी रही.
त्वचा के रोये रोये से,
दिशाओ का,
साक्षात्कार किया
स्पर्श के,
नैसर्गिक सम्बोधन की
हर सम्भावना को.......
उसने.....
स्वीकार किया
आहट की.....
छोटी से छोटी,
इकाई.....
उसकी संवेदनाओं को,
रोमांचित कर
दह में,
गूँज भर देती......
रगो में,
दौड़ता अंधकार
उसके अंतस को
आकर देता रहा,
जैसे........
कोख के,
गहरे अँधेरे में,
साँस लेता है.......जीवन.....
वह,
धरती की
हर करवट को
पोर...पोर...
महसूस करती,
पगडडियों की गंध,
.....उसे.....
मंज़िल के करीब ले जाती
.......वह लड़की........
जन्म और जात, से अंधी
नहीं, समझ पाई
जन्म से.....
जात का सम्बन्ध
......वह....
दिन और रात के,
सौंदर्य में,
निरंतर......निष्पक्ष बनी रही.
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