Wednesday, February 6, 2019

सहवेदना-2

मेरी समीपता के सानिध्य में सुरक्षित,
सो रही है बेटी,
अगनित, सवतंत्र विकल्पों के साथ,
आशाओं की भरपूर नींद........
बिटिया की स्निग्ध्ता को,
सहलाते हुए,
रात की निश्छल चांदनी में,
खोज रही हूँ.......मैं,
उसकी दिव्यता के मांगलिक संकेत.
भर रही हूँ ममत्व की गर्भित उड़ान,
.........और........
कहीं मेरी सहकर्मी,
मेहनतकश मित्र,
परिवार की सफलता के लिए,
उन्नत योजना बना रही होगी
कहीं कोई नवविवाहिता........
इंतज़ार से फलित,
क्रियाओं की,
कोमल संवेदनाएं बुन रही होगी
रात अपने एकांत में........
अपने मौन में,
कितने रहस्य खोल रही है,
अंतरिक्ष के गर्भ में,
आकार ले रही हैं,
कितनी रासायनिक क्रियाएँ
सूक्षम नक्षत्र भी हैं,
परिवर्तन शील........गतिमान
सम्पूर्ण बदलते परिवेश में,
सियारे भी,
अपनी....अपनी,
धुरी पर क्रियारत.
समय की इस अदभुद,
इकाई में,
समस्त आश्चर्य जनक सौंदर्य में,
.......तुम........
अपनी चार दीवारी से,
मेरे घर तक की,
निरंतरता में,
कितनी सहजता से हो अभयस्त
इस बदलते हुए परिवेश में,
कैसे बदलेंगी,
तुम्हारी भावदशा........?
क्या तुम अपनी,
वास्तविकता की गंध से,
साँसों को गौरवान्वित कर पाओगी....?
क्या तुम, वसंत के हिलोरों में झूल पाओगी,
इंद्रधनुषी उड़ान........?
क्या मकर की पहली संक्रांत के,
पवित्र जल से,
तुम्हारी जड़ों में,
अंकुरित हो पायेगा नव सृजन........?
क्या, उत्तरायण की,
सूर्य सत्ता से,
छट पाएगा, तुम्हारे प्रारब्ध का अंधकार................?
क्या, यह पगडंडिया..........
तुम्हें,
दे पाएंगी
एहसास की पराकाष्ठा.......?
क्या तुम्हें भी,
सफल दिशा निर्देश,
गर यह संकीर्णताएं,
दे पाए.........तुम्हें
निर्वाण का उजास.

1 comment:

चूड़ियों की खनक थी वहाँ, काँच की चुभन भी..... खामोश थी वह, कुछ हैरान भी लगातार, वह तलाशती है कुछ अनदेखा...... भीतर गहरे में कहीं गूँजत...