पहले से अलंकृत,
ध्वनियों में,
जब कोई नाद,
गूंजा होगा कहीं......
तुम हृदय में थे,
प्रकाश समेटे.......प्रभाकरण कहीं
आकाश के,
जलज पाश में थे,
धड़कते,इंद्रधनुष
करवटों में सात रंग कई
क्या, अदृश्य आलिंगन की,
अंतरिक्ष परिक्रमाओ से,
अवतरित हुए,
अग्निकण........सृजन ऊर्जा के कहीं,
इस अद्बुध रस के साक्षी,
मौन संवेदनाओं में थे,
तुम.......मेरे लिए,
और,
मैं......तुम्हरे लिए.....
पहले से कहीं
जब नहीं थी.......देह,
यह प्राण......
काल भी......
कहीं नहीं,
कहां थी.......
यह ऊर्जा,
यह चेतना.....
क्या.......अज्ञात के,
अनंत केन्द्रो में
प्रेम मये.......
पहले से,थी कहीं
ध्वनियों में,
जब कोई नाद,
गूंजा होगा कहीं......
तुम हृदय में थे,
प्रकाश समेटे.......प्रभाकरण कहीं
आकाश के,
जलज पाश में थे,
धड़कते,इंद्रधनुष
करवटों में सात रंग कई
क्या, अदृश्य आलिंगन की,
अंतरिक्ष परिक्रमाओ से,
अवतरित हुए,
अग्निकण........सृजन ऊर्जा के कहीं,
इस अद्बुध रस के साक्षी,
मौन संवेदनाओं में थे,
तुम.......मेरे लिए,
और,
मैं......तुम्हरे लिए.....
पहले से कहीं
जब नहीं थी.......देह,
यह प्राण......
काल भी......
कहीं नहीं,
कहां थी.......
यह ऊर्जा,
यह चेतना.....
क्या.......अज्ञात के,
अनंत केन्द्रो में
प्रेम मये.......
पहले से,थी कहीं
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