Sunday, February 3, 2019

तीली भर रोशनी

तमाम चेहरे,
एक हो जाते हैं,
लंबा,
गहरा,
अँधेरा,
जब फैलता है....
सर से पांव तक.
अँधेरे में........
हम देखते हैं.........
उजाले के सपने,
तलाशते हैं,
अपने हिस्से की ज़मीन.........
संभलकर,
पाँव रखने के लिए
अँधेरे में,
डूब जातें हैं,
उजाले में,
फैले, सारे भ्रम.
अँधेरे में,
हम
आँख खोलकर, देखने का प्रयास करते हैं,
टटोलते हैं.........
हाथ और हिम्मत
थामते हैं, हाथ......
नहीं पूछते,
उसकी जाति,
नहीं देखते,
रंग और धर्म.
हमारे स्पर्श में आती है,
सिहरन,
जो दिलाती है,
लहु की याद...........
घोर, सघन अँधेरा......
परत....परत,
गिरह खोलता है
तमाम आवाज़ें खामोश हो जाती हैं,
जब,
अँधेरे का,
सन्नाटा बोलता है.
हम,
पीते हैं,
बूँद बूँद
तन्हाई.............
सुनते हैं
महीन कम्पन,
नाभी की.........
धड़कन की........
और,
अचानक,
महसूस करते हैं,
जीवन का एहसास..........
अँधेरे में,
बच्चा कहता है,
.........माँ........
माँ, जो हो जाती है
तीली भर रोशनी,
फैल जाती है.........
गहरे,
काले,
अँधेरे में..........







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